भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अयोध्या-4 / सुधीर सक्सेना

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:35, 12 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर सक्सेना |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> अयोध्या में …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अयोध्या में आते हैं रामभक्त
आज से नहीं सदियों से
अयोध्या में आते हैं सन्त,
अयोध्या में आते हैं असन्त
अयोध्या में आते हैं गुरू-गोसाईं
अयोध्या में आती हैं रानियाँ
आते हैं राजे-महाराजे

अयोध्या में आते हैं नए-नए चेहरे
नए-नए चोले, नए-नए मुख और मुखौटे
अयोध्या में आते हैं पण्डे-मुस्टण्डे
अयोध्या में आते हैं संगतराश

अयोध्या में बीते कुछ बरस आए हैं कारसेवक
अयोध्या में लोग अभी भी करते हैं नमन,
अयोध्या में लोग करते हैं साष्टांग
अयोध्या में लोग अभी भी मानते हैं मनौतियाँ
सब-कुछ हस्बमामूल चला आ रहा है अयोध्या में

बस, अयोध्या में अन्धेरे में
कोई नहीं बुदबुदाता पश्चाताप,
अयोध्या में अन्धेरे में कोई नहीं कानों को हाथ लगा
बुदबुदाता है अर्द्धाली :
’क्षमहु नाथ मम अवगुन भारी ।’