Last modified on 13 दिसम्बर 2009, at 14:16

पहाड़ों पर बर्फ़ / चंद्र रेखा ढडवाल

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:16, 13 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> '''पहाड़ों प…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)



पहाड़ों पर बर्फ़

दिनों की गर्जन उपरान्त
सहसा ही
हल्के काले बादलों ने
नीले आकाश को छाकर
मौन साध लिया
इस चुप्पी को
किसी अनिष्ट का संकेत मान
सहमी पवन रुकी रह गई
तभी...
हेमंत के प्रांगण में
अजान किसी क्रीड़ा-प्रेमी ने
सफ़ेद गुलाब की
ढेरों पंखुड़ियाँ बिखरा दीं.

श्यामल मिट्टी
अपनी उजलाई पर रीझ
हँस पड़ी
पवन आश्वस्त हो
चल दी / बादल को साथ लिए
और हँस कर सूरज ने देखा
मुग्ध किरणें , हिमकणों को
चूम रही हैं.