नज़्म-इक दिन ऐसा भी आएगा / बेकल उत्साही
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छोटॆ-छोटॆ से कमरों में मानव सभी सिमट जाएँगे दीवारें ख़ुद फ़िल्में होंगी,दरवाज़े ख़ुद गाने होंगे
आँख झपकते ही हर इंसा नील-गगन से लौट आएगा इक-इक पल में सदियाँ होंगी,दिन में कई ज़माने होंगे
अफ़्सर सब मनमौजी होंगे,दफ़्तर में सन्नाटा होगा जाली डिग्री सब कुछ होगी कालेज महज़ बहाने होंगे
बिन पैसे के कुछ नहीं होगा नीचे से ऊपर तक यारो डालर ही क़िस्मत लिक्खेंगे रिश्वत के नज़राने होंगे
मैच किर्किट का जब भी होगा काम-काज सब ठप्प रहेंगे शेयर में घरबार बिकेंगे मलिकुल-मौत सरहाने होंगे
होटल-होटल जुआ चलेगा अविलाओं के चीर खिचेंगे फ़ोम-वोम के सिक्के होंगे डिबियों बीच ख़ज़ाने होंगे
शायर अपनी नज़्में लेकर मंचों पर आकर धमकेंगे सुनने वाले मदऊ होंगे संचालक बेमानी होंगे
बेकल इसको लिख लो तुम भी महिला-पुरुष में फ़र्क न होगा रिश्ता-विश्ता कुछ नहीं होगा संबंधी अंजाने होंगे
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