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समय की चट्टान / माखनलाल चतुर्वेदी
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मत दबा समय की चट्टानों के नीचे,
दोनों हाथों तेरी मूरत को खींचे,
चरणों को धोते, आधे से दृग मींचे,
मैं पड़ा रहूँगा तरु-छाया के नीचे,
स्वागत, जग चाहे कितना कीच उलीचे।
मत दबा समय की चट्टानों के नीचे।
रचनाकाल: जबलपुर जेल-१९३०