Last modified on 16 दिसम्बर 2009, at 06:52

औरत का क्या / चंद्र रेखा ढडवाल

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:52, 16 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल |संग्रह=औरत / चंद्र रेखा ढडवाल }}…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


पुरुष को चाहिए
सब अपने मन का
औरत का क्या
झोंक लगाते
धूल झाड़ते
उधड़ा सीते
गाँठ लगाते
गाँठ खोलते
गहने गढ़वाते
गहने तुड़वाते
इसे मनाते उसे पतियाते
भागवत सुनते
कीर्तन करते
जी जाती है