भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शायद / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:47, 18 दिसम्बर 2009 का अवतरण
ताज़ा-पकी रोटियों की महक
मेरे नथुनों के आस-पास मंडरा रही है
तुम्हें भूख लगी है शायद
ठंडे पानी का स्पर्श
मेरे गले को सींचता हुआ जान पड़ रहा है
तुम्हें प्यास लगी है शायद
बोझिल-बोझिल होती हुई
झपकने लगी हैं मेरी पलकें
तुम्हें नीद आ रही है शायद
रचनाकाल : 1993, विदिशा
शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।