भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अनुराग तुम्हारा / संज्ञा सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:19, 18 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संज्ञा सिंह }} {{KKCatKavita}} <poem> अखंडित अनुराग तुम्हारा …)
अखंडित
अनुराग तुम्हारा
राग बना रहा मेरे लिए
खंडित दलित
प्यार मेरा
कहीं से भार नहीं बना
तुम्हारे लिए
तुम सब कुछ करते रहे
आह में चाह के स्वर
सहेजे
मै
तुम्हारे लिए
न बचा सकी
ख़ुद को
रचनाकाल : 1995, विदिशा