भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आँधियों से थे अनमने तिनके / विनोद तिवारी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

KKCatGhazal


आँधियों से थे अनमने तिनके
कौन आया बुहारने तिनके

ये ज़माने की ठोकरों में पले
आँख की किरकिरी बने तिनके

कोई लाया था एक चिन्गारी
फूँक डाले हैं आग ने तिनके

बोझ इस्पात का सँभालेंगे
एक-जुट हो के जो तने तिनके

घोंसले वालो आ गए वहशी
चीख़ते ख़ून में सने तिनके