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फूट गये हीरा की बिकानी कनी हाट हाट / गँग

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कविता कोश में कवित्त

फूट गये हीरा की बिकानी कनी हाट हाट,
काहू घाट मोल काहू बाढ़ मोल को लयो।
टूट गई लँका फूट मिल्या जो विभीषन है,
रावन समेत बस आसमान को गयो।
कहै कवि गँग दुरजोधन से छत्रधारी,
तनक मे फूँके तें गुमान बाको नै गयो।
फूटे ते नरद उठि जात बाजी चौसर की,
आपुस के फूटे कहु कौन को भलो भयो।


गँग का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।