Last modified on 26 दिसम्बर 2009, at 20:43

आदमी ही तो है वह... / पंकज सुबीर

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:43, 26 दिसम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आदमी ही तो है वह
फिर क्यों उम्मीद कर रहे थे तुम
कि उसके होगी बाकायदा एक रीढ़ की हड्डी भी
कि वह नहीं लपलपायेगा जीभ
और ना ही टपकायेगा लार
कि मौका आने पर नहीं लौट जाएगा वह
उन्हींह सड़ांध मारते बजबजाते पैरों पर
जिनकी करता रहा है वह उम्र भर आलोचना
आदमी ही तो है वह
फिर क्यों उम्मीद कर रहे थे तुम
कि उसके होगी एक आत्मा भी
बाकायदा
वही आत्मा जिसे कहा जाता है
किसी परमात्मा टाइप की चीज का अंश
कि वह चुनेगा हमेशा
विद्रोह और अवसर में से
विद्रोह को
आदमी ही तो है वह
फिर क्यों उम्मीद कर रहे थे तुम
कि वह नहीं बनेगा हिस्सा
किसी व्यवस्था का
कि वह आदमी है इसलिये नहीं करेगा रक्तपान
कि वह परखेगा नैतिकता सीढ़ियों की
उन पर चढ़ने से पहले
कि वह ऐसा कुछ भी नहीं करेगा
जो नहीं करना चाहिये आदमी को
क्यो उम्मीद कर रहे थे तुम
जानते हुए भी कि
एक आदमी ही है वह