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विचारों की असमानता / रमा द्विवेदी

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ऊंचाई मनुष्य को अपने परिवेश से,
करती है अलग,
ऊंचाई चाहे पद की हो,
पैसे की हो या ज़ान की,
मनुष्य सहज नहीं हो पाता,
अपने स्तर की चाह में वो,
कहीं सुकून नहीं पाता,
स्तर की समानता है आवश्यक,
समानता जुड़ने का है एक माध्यम,
असमानता में मानव टूट सकता है,
किन्तु वह सहज नहीं हो पाता।
विचारों की असमानता,
संबंधों के टूटने का,
है एक विशेष कारण,
विचारों की असमानता ,
मनुष्य को अनजाने ही,
कठोर बना देती है,
आत्म विस्तार के अभाव में,
अपने संपूर्ण व्यक्तित्व को ,
दांव पर लगा देती है।
झगड़ा रिश्तों का नहीं,
विचारों का होता है,
विचारों के झगड़े में ही,
मानव रिश्तों को खोता है।
रिश्तों को निभाने का वह ,
असफल प्रयास करता है,
किन्तु अपनी सोच के परिवर्तन का,
कोई उपचार नहीं करता,
हर समस्या का समाधान ,
हर एक के दिल में होता है,
विश्वास,आत्मीयता,सही सोच,
रिश्तों को बनाये रखने का,
अचूक हल होता है।