प्यार भी करते हो तुम तलवार की धार पर,
जान भी ले लेते हो, प्यार के इंकार पर।
बर्बरता का यह कौन सा सोपान है?
खून की वेदी रचाते हो हमें तुम मारकर॥
भावनाएँ घायल हुईं जब ,
फिर जिस्म में था क्या बचा?
जिस्म के टुकड़े किए फिर भी,
हैवानियत का यह कैसा नशा?