भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्यार भी करते हो / रमा द्विवेदी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:22, 26 दिसम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्यार भी करते हो तुम तलवार की धार पर,
जान भी ले लेते हो, प्यार के इंकार पर।
बर्बरता का यह कौन सा सोपान है?
खून की वेदी रचाते हो हमें तुम मारकर॥

भावनाएँ घायल हुईं जब ,
फिर जिस्म में था क्या बचा?
जिस्म के टुकड़े किए फिर भी,
हैवानियत का यह कैसा नशा?