Last modified on 27 दिसम्बर 2009, at 00:05

जीवन की कर्मभूमि / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:05, 27 दिसम्बर 2009 का अवतरण ()

जीवन की इस कर्मभूमि में,
ठीक नहीं है बैठे रहना।
बहुत ज़रूरी है जीवन में
सबकी सुनना, अपनी कहना।

सुख जो पाए हम मुस्काए,
आँसू आए उनको सहना।
रुककर पानी सड़ जाता है,
नदी सरीखे निशदिन बहना