भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ना हम तुमसे नेह लगाते / विनोद तिवारी
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:39, 28 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद तिवारी |संग्रह=सुबह आयेगी / विनोद तिवारी }} …)
ना हम तुमसे नेह लगाते
ना तुम मन की आस तोड़ते
हमको यदि विश्वास न होता
तुम कैसे विश्वास तोड़ते
लख पाते मुख-चन्द्र तुम्हारा
हम अपना उपवास तोड़ते
उनको वीराने भाते हैं
जिनके दिल मधुमास तोड़ते
हमने पाया है काँटों को
फूलों का उल्लास तोड़ते
तुम्हें शिकायत थी तुम कहते
हम बंधन सायास तोड़ते