भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़माने में बहुत तन्हा था वो / विनोद तिवारी
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:41, 28 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद तिवारी |संग्रह=सुबह आयेगी / विनोद तिवारी }} …)
ज़माने में बहुत तन्हा था वो
कि टूटा डाल से पत्ता था वो
पुलिसथाने में पक्का दर्ज़ था
बहुत मासूम था कच्चा था वो
कि उसका भाग्य थीं गुमनामियाँ
समंदर में महज़ क़तरा था वो
किसी को लूटता था रोज़ ही
किसी के हाथ ख़ुद लुटता था वो
पड़ा था वो सड़क पर भीड़ थी
किसी का कुछ नहीं लगता था वो