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बुल्गारिया से भारी, बेकाबू तोपों की धमक।
वह पहाड़ की रीढ़ से टकराती है, हिचकिचाती है और गिरती है।
आदमी, जानवर, गाडियाँ और ख़यालों का एक बढ़ता हुआ ढेर।
हिनहिनाकर सड़क अपने पिछले पैरों पर खड़ी होती है
आसमान अपनी अयाल लिए भाग रहा है। चलाचली के इस भूचाल में
तुम मुझमें हो, हमेशा के लिए
मेरे वजूद में तुम दमकती हो, चुप और अचल,
मौत के सामने गूंगे फ़रिश्ते की तरह या
एक सड़े हुए पेड़ के गढ़े में अपने को गड़ाते हुए कीड़े की तरह।
रचनाकाल : 30 अगस्त 1944
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