भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब्द / भविष्य के नाम पर / केशव

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:51, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण (शब्द. / केशव का नाम बदलकर शब्द / भविष्य के नाम पर / केशव कर दिया गया है)

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लिखकर भी
पूरा नहीं उतरता
भीतर का सच

रंग
जम जाते हैं
चित्र की हथेलियों पर

बार-बार होती है दस्तक
भीतर
गुहा द्वार पर

पर
पुतलियों में जम जाती है
एक झील

शब्द
कर लेते हैं आत्महत्या
खिड़कियों से कूद
गुहा द्वार खुलने से पहले

कथावाचक
जिन आख्यानों के सहारे
प्रस्तुत करते हैं समाधान
वह प्रभु
जन्मता तो है
पर मुर्दा

कि नपुंसक हैं ये शब्द
जो नहीं लाँघते
लक्ष्मण-रेखाएँ
खोलते नहीं घाव
और अनुभव
हमेशा छूट जाता है
अपने सँस्करण छाप.