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कवि / अभियान / महेन्द्र भटनागर

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मैं विद्रोही कवि, मैं नवयुग को निर्मित करने वाला हूँ !

मैं शिव बनकर सारी जर्जर सृष्टि भस्म करने को आया,
बस मस्ती से कंटक-पथ पर ही चलना मुझको भाया ;
धधक उठी लपटें धू-धू कर मेरे एकमात्र इंगित से,
अब मिट जाएगी दुनिया से शोषक-वर्गों की छल-माया,
नष्ट-भ्रष्ट कर सारे बंधन, लाया नव-जीवन-ज्वाला हूँ !

परिवर्तन का आकांक्षी हूँ, मन्थन कर सकता सागर का,
वह भीषण आँधी हूँ जिससे कँपता वक्षस्थल अम्बर का,
मैं नवयुग का अग्रदूत हूँ, नयी व्यवस्था का निर्माता,
मैं नवजीवन का गायक हूँ, साधक अभिनव प्राणद स्वर का,
सजग-चितेरा नव-समाज को मैं चित्रित करने वाला हूँ !

मैं अजेय दुर्दम साहस ले दृढ़ता से करता आन्दोलन,
थर-थर कँप जाता है जिससे अवरोधी धरती का कण-कण,
युग के अगणित संघर्षों में, उलझा रहता मेरा जीवन
जिन संघर्षों से व्याकुल हो मानव कर उठते हैं क्रन्दन,
मैं इन संघर्षों से निर्भय, वज्रों को सहने वाला हूँ !

रचनाकाल: 1945