भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जन्म दिन मुबारक हो माँ! / भावना कुँअर

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:30, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण ()

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जन्म दिन मुबारक हो माँ !

लो माँ… एक साल और बीत गया

ना हो पाया

इस साल भी

हमारा मिलन,

सोचा था…

इस जन्म दिन पर

मैं तुम्हारे साथ रहूँगी,

पर मेरी विवशता देखो,

नहीं आ पाई इस साल भी,

क्योंकि…

मैं निभा रही हूँ

उन कसमों को, उन वादों को

जो तुमने मुझे निभाने को कहा था…

परिवार के उन दायित्वों को

जो तुमने मुझे सिखाया था…

जब मैं विदा हो चली थी

उस घर से इस घर के लिये

पर माँ !

मैं माँ और पत्नी के साथ-2

इक बेटी भी हूँ ना…

मुझे भी तुम्हारी याद आती है

तुम्हारी वो सुकून भरी गोद

जब मैं टूटती या बिखरती हूँ

पर, फिर लग जाती हूँ

निभाने दायित्वों को

तुम्हारी ही दी हुई

शिक्षा को

तुम भी तो मुझे याद करती होगी माँ !

पर

तुम भी तो घिरी हो

दायित्वों के घेरे में,

पर, तुम कभी नहीं थकती।

लेकिन, मैं देख पाती हूँ

वो मायूसी

जो मेरे दूर रहने से छा जाती है

तुम्हारी आँखों में

पर, माँ ! तुम उदास मत होना

शायद अगले साल

तुम्हारे जन्मदिन पर मैं

तुम्हारे पास होऊँ

इसी इन्तजार में…

आज से ही गिनती हूँ दिन…

३६५ हाँ पूरे ३६५ दिन…

फिर मिलकर काटेगें केक

मैं खिलाऊँगी केक का टुकडा तुम्हें

जो अपनी देश की धरती से दूर रहकर

नहीं खिला पायी

और तुमने भी तो..

मेरे ही कारण

केक बनाना ही छोड़ दिया

और छोड़ दिया जन्म दिन मनाना भी

माँ ! अगले साल मनाएँगे जन्म दिन

सजायेंगे महफिल

और तुम

केक बनाकार रखना

और फिर

मेरा इन्तजार करना...

मेरा इन्तजार करना...