भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वेदना / अंतराल / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:25, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण (वेदना (अंतराल) / महेन्द्र भटनागर का नाम बदलकर वेदना / अंतराल / महेन्द्र भटनागर कर दिया गया है)

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


घाव पुराने पीड़ा के
जाने-अनजाने में सबके
आज हरे गीले सूजे !
रह-रहकर बह जाती असह्य लहर,
मानो बिजली का तीव्र करेंट ठहर
मांस मौन तड़पा देता !
नाली के कीड़ों जैसा इधर-उधर
जग के सारे ओर-छोर घेरे,
हृदय विदारक
नाशक
मूक अभावों की
धूल भरी अंधी
आँधी बहती जाती !
मर्माहत यौवन चीख रहा
रोक भुजाओं से असफल !
आज निराशा के बादल
छाये नभ में उमड़-घुमड़ ;
जीवन में,
जन-जन-मन में हलचल !

आज युगों के घाव हरे !
हर उर में
दुख-दर्द भरे !
1949