भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सदस्य:KRaj

Kavita Kosh से
KRaj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:30, 29 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: हलात के कदमो मे कलन्दर नहीँ गिरता, गर टूटे तारा तो जमी पर नहीँ गिरत…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हलात के कदमो मे कलन्दर नहीँ गिरता, गर टूटे तारा तो जमी पर नहीँ गिरता। बडे शौक से गिरते हैँ समन्दर मेँ दरिया, पर किसी दरिया मेँ समन्दर नहीँ गिरता।