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त्रासदी / आहत युग / महेन्द्र भटनागर

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दहशत : सन्नाटा

दूर-दूर तक सन्नाटा !

सहमे-सहमे कुत्ते
सहमे-सहमे पक्षी
चुप हैं।

लगता है-
क्रूर दरिन्दों ने
निर्दोष मनुष्यों को फिर मारा है,
निर्ममता से मारा है !

रातों-रात
मौत के घाट उतारा है !
सन्नाटे को गहराता
गूँजा फिर मज़हब का नारा है !
ख़तरा,
बेहद ख़तरा है !

रात गुज़रते ही
घबराए कुत्ते रोएंगे,
भय-विह्वल पक्षी चीखेंगे !

हम
आहत युग की पीड़ा सह कर
इतिहासों का मलबा ढोएंगे !