भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वास्तविकता / जीने के लिए / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:44, 2 जनवरी 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़िन्दगी ललक थी; किन्तु भारी जुआ बन गयी,
ज़िन्दगी फ़लक थी; किन्तु अंधा कुआँ बन गयी,
कल्पनाओं रची, भावनाओं भरी, रूप - श्री
ज़िन्दगी ग़ज़ल थी; बिफर कर बददुआ बन गयी!