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सुख / बसंत त्रिपाठी

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बरसों पुराना कोई परिचित
किसी अजनबी शहर में
अचानक मिल जाए
उसका नाम आपकी स्मृति में
आकार नहीं ले पा रहा हो
जबकि वह कहे कि बीते दिनों
वह लगातार आपको याद करता रहा
और उसे आपका नाम तक याद हो

विस्मृति में दुबका कोई गीत
होंठों पर चला आए चुपचाप
और याद दिलाए बीते प्रेम की मीठी कसक

शाम हम घर लौटें
और थकान न महसूस हो
अचानक अच्छी कविताओं पर भरोसा करने को
जी चाहे।