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रात रोते हुए कटी यारो / विनोद तिवारी

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रात रोते हुए कटी यारो
अब भी दुखती है कनपटी यारो

हमने यूँ ज़िंदगी को ओढ़ा है
जैसे चादर फटी-फटी यारो

शक की बुनियाद पर टिका है शहर
दोस्त करते हैं गलकटी यारो

भूख में कल्पना भी होती है
फ़ाख़्ता एक परकटी यारो

किससे मजबूरियाँ बयान करें
जीभ तालू से जा सटी यारो

चुप्पियों की वजह बताएँगे
वक़्त से गर कभी पटी यारो