भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओइ के खंडहर / नरेश सक्सेना

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:47, 5 जनवरी 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

(उत्तरी अफ़्रीका में रोमन साम्राज्य के अवशेष}

गोरी औरतें सज रही हैं

अभी गुलाम आएंगे
काली पीठों पर कोड़े खाते हुए
उन्हें याद आएंगे अपने बिके हुए शिशु
जब गोरे बच्चे हँसते हुए उन्हें दिखेंगे
जो सीख रहे होंगे बोझा ढोना
काली पीठों पर
कोड़े खाते हुए अनजाने देशों में

वहाँ भी सज रही होंगी गोरी औरतें
गोरे बच्चे हँस रहे होंगे।