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जवानी का झण्डा / रामधारी सिंह "दिनकर"

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खड़ा हो, कि पच्छिम के कुचले हुए लोग
उठने लगे ले मशाल,
खड़ा हो कि पूरब की छाती से भी
फूटने को है ज्वाला कराल!
खड़ा हो कि फिर फूँक विष की लगा
धुजटी ने बजाया विषान,
खड़ा हो, जवानी का झंडा उड़ा
ओ मेरे देश के नौजवान!



रचनाकाल: १९४५