भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुसाफ़िर / विष्णु नागर

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:41, 13 जनवरी 2010 का अवतरण (मुसफ़िर / विष्णु नागर का नाम बदलकर मुसाफ़िर / विष्णु नागर कर दिया गया है)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं हूँ मुसाफ़िर
चार बार आऊंगा
चार बार जाऊंगा
शुक्र की सुबह आया हूँ
आज की रात चला जाऊंगा

मुसाफ़िर से कहो, बैठ
तो क्या बैठेगा
कहो, चाय पी
तो पानी पी कर जायेगा
कहो, बता अपना हाल
तो तम्बाखू मसलने बैठ जायेगा

मुसाफ़िर से कहो
तू बैठता नहीं
तू चाय नहीं पीता
तू बात नहीं करता
तो जा देख दूसरी जगह
यह मुसाफ़िरखाना नहीं
यह है गृहस्थ का घर

इन्हीं बातों पर
मुसाफ़िर को गुस्सा नहीं आता
यही बातें उसे प्यारी लगती हैं
यही बातें उसे यहाँ ले आती हैं
यही बातें उसे
बीमार पत्नी के मरने पर
रोने देती हैं