भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जन्म / राजेश जोशी

Kavita Kosh से
Mukesh Jain (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:11, 15 जनवरी 2010 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जन्म

ऊट की पीठ पर अपनी खटिया बाँध कर<br\> चल देंगे अभी बंजारे<br\> दूर तक उनके साथ साथ जायेगी मेरी बेचैन आत्मा.

धूप के साथ सरकती किसी पेड़ की छाँव में<br\> डाल देंगे वे अपना डेरा और पकायेंगे<br\> बाटियाँ और दाल<br\> छाँह के साथ सरकते रहेंगे वे दिनभर<br\> घड़ी की सुइयों के साथ जैसे सरकता रहता है समय.

कितनी अनमोल, कितनी अद्वतीय होती हैं वे साधरण चीजें<br\> जिनके सहारे चलता है यह महाजीवन.

वो छोटी सी काली हंडिया जिसमें पकाई जाती है दाल<br\> और रख ली जाती है जीवन की छोटी छोटी खुशियाँ.<br\> पुराने अखबार का वो कोई छोटा सा टुकड़ा<br\> जिसमें बाँध कर रखा जाता है नमक<br\> इतने सहेज कर रखती है वह बंजारन औरत नमक को<br\> काग़ज में बाँध लिया हो जैसे उसने पूरा अरब सागर.

बंजारों ने अभी डेरा डाला है मेरे घर के ऎन सामने<br\> किसी फल की फाँक की तरह आसमान पर लटका है<br\> कार्तिक की सप्तमी का चाँद<br\> सड़क के एक किनारे, पान की गुमटियों के पीछे<br\> एक छोटे से टाट की आड़ और लालटेन की मद्धिम रोशनी में<br\> बंजारन बहू ने जन्म दिया है अभी अभी<br\> एक बच्चे को!

० अक्टूबर १९८७