भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नींद / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
पूजा जैन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:15, 24 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / …)
मैं
पढा़ई पूरी करने के बाद सोऊँगी
सोऊँगी ज़रूर नौकरी मिलने के बाद
पहले विवाह करके घर तो बसा लूँ
भेज तो लूँ बच्चे को स्कूल
पढा़-लिखाकर बना तो दूँ
उसे अफसर
विवाह ही कर दूँ उसका
फिर पोते के साथ खूब सोऊँगी
यही सोचते-सोचते गुज़र गई
तमाम उम्र...
और अब नींद नहीं आती।