Last modified on 24 जनवरी 2010, at 00:17

जब स्त्री प्रसन्न होती है / रंजना जायसवाल

पूजा जैन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:17, 24 जनवरी 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब
स्त्री प्रसन्न होती है
सूर्य में आ जाता है ताप
धान की बालियों में
भर जाता है दूध...

नदियाँ उद्वेग में भरकर
दौड़ पड़ती हैं
समुद्र की ओर...

खिल जाते हैं फूल
सुगन्ध से भर जाती है हवा
परिन्दे चहचहाते हैं
तितलियाँ उड़ती हैं
आकाश में उगता है चाँद

चमकते हैं तारे-जुगनू
खिलखिलाती है चाँदनी
आँखों में भर जाती है
उजास...

पुरुष बेचैन हो जाते हैं
और बच्चे निर्भय...।