जब भी
जीती हूँ तुममें
तुम
आ जाते हो
मुझमें
और हर लेते हो
मेरे अन्दर का
सूनापन
बाहर
पसर जाती है
एक चुप्पी
और भीतर मच जाती है
हलचल
रातें
सजल हो जाती हैं
दिन तरल
पोखर भर जाता है
पुरइन मगन हो जाती है...।
जब भी
जीती हूँ तुममें
तुम
आ जाते हो
मुझमें
और हर लेते हो
मेरे अन्दर का
सूनापन
बाहर
पसर जाती है
एक चुप्पी
और भीतर मच जाती है
हलचल
रातें
सजल हो जाती हैं
दिन तरल
पोखर भर जाता है
पुरइन मगन हो जाती है...।