भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्योंकि यहाँ तुम रहते हो / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
पूजा जैन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:04, 24 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / …)
यह शहर
मुझे अच्छा लगता है
क्योंकि यहाँ तुम रहते हो
भले ही हमारे घरों के बीच
मीलों का फ़ासला है
भले ही तुम्हें देखे
गुज़र जाते हैं
बरसों - बरस
भले ही हमारे बीच खडी़ है
सैकड़ों दीवारें
भले ही यह शहर
हो गया है असुक्षित
फिर भी तुम्हारी उपस्थिति की सुगन्ध
महकाए रहती है
मेरे रात - दिन
और इसे छोड़ने की कल्पना से दुखता है मन...।