भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम हैं इतना ही काफ़ी है / मुकेश जैन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:35, 26 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश जैन |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> हम हैं इतना ही काफ़…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम हैं
इतना ही काफ़ी है उन्हें
हमारे होने से फ़र्क़ नहीं पड़ता
हम न होते तो दिक़्क़त थी
  
एक दिन उन्होने हमें बुलाया
सभी गए
उन्होने कहा- बाजा बन जाओ
सभी बाजा बन गये
उन्होने बजाया
हम बजे
उन्होने धप्प से मारा
हम हँसे।
 
हम हँसे
तो फूल झड़े
उन्होने फूलों पर पैर रखा
और कहा
मज़ा आया।


रचनाकाल : 13 जनवरी 2010