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और अब शुरू / अशोक वाजपेयी
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और अब शुरू होता है
अनुपस्थिति का दुख ।
कामना की राह
अन्धेरी और लम्बी है ।
आकाश नीला और निर्दय
निहारता है बिना मदद किए ।
सितारे भटकते हैं
कामना की आकाशगंगाओं में
खोए हुए।
धरती चुपचाप विलाप करती है।