भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुरार गाँव की औरतें-2 / देवमणि पांडेय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:29, 29 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवमणि पांडेय }} {{KKCatGhazal‎}}‎ {{KKCatKavita‎}} {{KKCatGeet}} <poem> कुरार ग…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुरार गाँव की औरतें
टी०वी० पर राम और सीता को देखकर
झुकाती हैं शीश
कृष्ण की लीलाएँ देखकर
हो जाती हैं धन्य
और परदे पर झगड़ने वाली औरत को
बड़ी आसानी से समझ लेती हैं बुरी औरत

वे पुस्तकें नहीं पढ़तीं
वे अख़बार नहीं पढ़तीं
लेकिन चाहती हैं जानना
कि उनमें छपा क्या है !

घर से भागी हुई लड़की के लिए
ग़ायब हुए बच्चे के लिए
या स्टोव से जली हुई गृहिणी के लिए
वे बराबर जताती हैं अफ़सोस

उनकी गली ही उनकी दुनिया है
जहाँ हँसते-बोलते, लड़ते-झगड़ते
साल दर साल गुज़रते चले जाते हैं
और वक़्त बड़ी जल्दी
घोल देता है उनके बालों में चाँदी