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दिल हैं शोले निगाहें धुआँ / साग़र पालमपुरी
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दिल हैं शोले निगाहें धुआँ
जिस्म हैं जैसे जलते मकाँ
फीकी-फीकी-सी है चाँदनी
मैली-मैली-सी है कहकशाँ
था जो इतने परिंदों का घर
पेड़ है वो न जाने कहाँ
दिल की आसूदगी के लिए
आदमी आज जाए कहाँ
ग़म भी कोई नहीं मुस्तक़िल
और ख़ुशी भी नहीं जावेदाँ
साज़िशें हो गईं कामयाब
कोशिशें सब हुईं रायगाँ
सुनने वालों को फ़ुर्सत नहीं
हम सुनाएँ किसे दास्ताँ
जल ही जाए न 'साग़र' कहीं
आग की ज़द में यह आशियाँ