भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल हैं शोले निगाहें धुआँ / साग़र पालमपुरी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:54, 29 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोहर 'साग़र' पालमपुरी }} {{KKCatGhazal}} <poem> दिल हैं शोले न…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल हैं शोले निगाहें धुआँ
जिस्म हैं जैसे जलते मकाँ
 
फीकी-फीकी-सी है चाँदनी
मैली-मैली-सी है कहकशाँ
 
था जो इतने परिंदों का घर
पेड़ है वो न जाने कहाँ
 
दिल की आसूदगी के लिए
आदमी आज जाए कहाँ
 
ग़म भी कोई नहीं मुस्तक़िल
और ख़ुशी भी नहीं जावेदाँ
 
साज़िशें हो गईं कामयाब
कोशिशें सब हुईं रायगाँ
 
सुनने वालों को फ़ुर्सत नहीं
हम सुनाएँ किसे दास्ताँ
 
जल ही जाए न 'साग़र' कहीं
आग की ज़द में यह आशियाँ