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कवि / भास्कर चौधुरी

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हमारा कवि
हमारा नहीं रहा

ए०सी० गाड़ी से
नीचे नहीं उतरता
वहीं शीशे के पीछे से
हाथ हिला देता है
अब वह जनपदों में नहीं जाता
जनपद का कवि
दिल्ली में रहता है
ज्ञानपीठ वालों की कतार में
सबसे आगे वही है
हमारा कवि
हमारा नहीं है

अपने गाँव से गए उसे
अरसा हो गया है
पर अब भी वह गाँव पर लिखता है

हमारा कवि
आजकल आत्मकथा लिख रहा है
वह लिखता है
बचपन में ही उसने अनेक
कहानियाँ लिख लीं थी
हालाँकि
कभी रह चुका कवि का लगोंटिया यार
जो अब भी उसी गाँव में रहता है
जो अपनी एक एकड़ ज़मीन में
बीजों को सड़ने से बचाने के लिए
दिन भर खटता है
उसे पूरी तरह झूठा कहता है

हमारा कवि
जो महानदी और कनहार माटी पर
लम्बी कविताएँ रचता है
अब पास नदी के आने
और माटी को छूने का
समय उसे नहीं मिलता है

हमारा कवि
अपने लंगोटिया यार के
सचों से बहुत डरता है!!