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सुकून / भास्कर चौधुरी
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पंद्रह दिनों से बिस्तर पर थी दादी
दादा की मृत्यु के बाद से
मंझले बेटे के साथ थी
बीस-पच्चीस वर्षों से
दादी कहती
अब कोई इच्छा नहीं बाक़ी
अब बस
हो गए दिन पूरे
माँ को पास बुलाती
पूछती कान में मुँह लगाकर
बमुश्किल निकलती आवाज़ में -
आज तिथि कौन सी है
कौन सा पक्ष चल रहा है...
आख़िर
हुआ भी वही जो दादी चाहती थी
जब मरी दादी तो शुक्ल पक्ष चल रहा था
आसमान में चाँद दिन के उजाले में भी
अपनी उपस्थिति जता रहा था
मौसम न अधिक ठंडा था न गर्म
ख़त्म हो चुकी थीं
बच्चों की अर्धवार्षिक परीक्षाएँ
दादी मरी तो बड़े बेटे और छोटे बेटे
दोनों आए दो दिनों के लिए
दादी मरी तो
सब ओर सुकून था...