भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पुलिस फिरौती मांगे रे मितवा / रवीन्द्र प्रभात
Kavita Kosh से
रवीन्द्र प्रभात (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:42, 5 फ़रवरी 2010 का अवतरण
पुलिस फिरौती मांगे मितवा,
शहर घिनौना लागे मितवा !
सुते पहरुआ,चोर -उचक्का -
रात -रात भर जागे मितवा !
गणिका बांचे काम, पतुरिया -
पीछे -पीछे भागे मितवा !
दुर्जन मदिरा पान में पीछे -
संत -मौलवी आगे मितवा !
कहे "प्रभात" सुनो भाई जनता -
भूखे लोग अभागे मितवा !!