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सपनों की दुनिया-2 / देवेन्द्र कुमार देवेश
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सोई हुई आँखों के सपने
शायद ही कभी होते हैं मनोनुकूल
सब कुछ भिन्न होता है प्रायः
हमारी जागी हुई दुनिया के सपनों से।
किस दुनिया के होते हैं ये सपने?
कैसे रोकें हम इनकी घुसपैठ
अपने अवचेतन मन से चेतन संसार तक?