भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अन्तर्विरोध / कृष्णमोहन झा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:33, 10 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृष्णमोहन झा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> अपने इस छोटे से …)
अपने इस छोटे से जीवन में
इतने प्रतिभाशाली इतने योग्य इतने सच्चे लोगों को
सड़क पर धूल फाँकते
और दर-ब-दर भटकते देखा है
और दूसरी तरफ
इतने लिजलिजे इतने धूर्त ऐसे फिसड्डियों को
सफलता के मंच पर मटकते देखा है
कि लगता है
हमारे समय में विफलता ही
योग्यता की सबसे बड़ी कसौटी है