Last modified on 12 फ़रवरी 2010, at 15:51

देखिए कितने सोगवार हैं लोग / विनोद तिवारी

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:51, 12 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद तिवारी |संग्रह=दर्द बस्ती का / विनोद तिवार…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देखिए कितने सोगवार हैं लोग
सालहा-साल से बीमार हैं लोग

बस्तियाँ ग़र्क़ हैं अँधेरों में
गो कि सूरज का इंतज़ार है लोग

जोड़ पाए न ज़िन्दगी का हिसाब
कुछ नक़द और कुछ उधार हैं लोग

हर सुबह चेहरे पे नई सिलवट
पहली तारीख की पगार हैं लोग

थोक के भाव लीजिए साहब
आजकल जिंस में शुमार हैं लोग

इनको अवतारों की तलाश भी है
ख़ुद भी भगवान का अवतार हैं लोग

माँग सकते हैं आपसे भी जवाब
हर कहानी के राज़दार हैं लोग

दूर गलियों से उभरते नारे
लगता है कुछ तो बेक़रार हैं लोग