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असली नाम पसीने का है हिन्दुस्तान / पुरुषोत्तम प्रतीक

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असली नाम पसीने का है हिन्दुस्तान
फिर क्यों माँगे रोटी, कपड़ा और मकान

सोच कि तेरा किया-कराया कहाँ गया
हिस्सा तेरा किसके घर में समा गया
तुझे छीनना और बाँटना आता है
अब तक बाँटा सबको जीने का सामान

छील रही है तुझे ज़िन्दगी छाँट रही
किसकी चालाकी जो तुझको बाँट रही
तुझे छीलना और छाँटना आता है
तेरी गूँज मशीनों में तेरी पहचान

धरती-जैसा सीना ही तूने पाया
बेईमानी ने सारा कुछ कब्ज़ाया
तुझे बीजना और काटना आता है
सागर है तुझमें भी तो होगा तूफ़ान

रेल, नहर, पुल, बाँध, पटरियों पर लेखा
गिरते-गिरते तूने उठतों में देखा
तुझे खोदना और पाटना आता है
जगह-जगह से बोल रहे तेरे निर्माण


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