भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हाथ आकर लगा गया कोई / कैफ़ी आज़मी
Kavita Kosh से
Sandeep Sethi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:19, 14 फ़रवरी 2010 का अवतरण
हाथ आकर लगा गया कोई
मेरा छप्पर उठा गया कोई
लग गया इक मशीन में मैं
शहर में ले के आ गया कोई
मैं खड़ा था कि पीठ पर मेरी
इश्तिहार इक लगा गया कोई
यह सदी धूप को तरसती है
जैसे सूरज को खा गया कोई
ऐसी मंहगाई है कि चेहरा भी
बेच के अपना खा गया कोई
अब वो अरमान हैं न वो सपने
सब कबूतर उड़ा गया कोई
वोह गए जब से ऐसा लगता है
छोटा मोटा खुदा गया कोई
मेरा बचपन भी साथ ले आया
गांव से जब भी आ गया कोई