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जीवन, तू अविरल बहता रहे / तारा सिंह

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रचनाकार: तारा सिंह

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जीवन तू पानी का कण नहीं
जो तिनके से लग जाए ठहर
तू तो जिन्दगी की नदिया में
है उठते लहरों की तरह
जीवन, तू अविरल बहता रह
जीवन, तू कोई गुलाब नहीं
जो डाली से हो जाये अलग
तू कोई आफताब नहीं
जब जी में आये, जाये घट
और जब चाहे, जाये बढ़
तू तो है, नीले अंबर के
सागर में उन सितारों की तरह
जो रहता है खिला उत्पल की तरह
जिसमें महक भी हो और हो ललक
जीवन, तू अविरल बहता रह
जिंदगी की पवित्र गंगा में
तू है तरंगित धारा की तरह
जिसके अंतःस्थल में है पवित्रता
और महक है चंदन की तरह
जीवन, तू अविरल बहता रह
जिंदगी– ताल के अंतःस्थल में
तू रह बादल में बिजली की तरह
प्रेमांलिगन बिना, जिंदगी शिथिल है
तू तैरते रह कुमुदिनी की तरह
जीवन, तू अविरल बहता रह
अगर दुख तूफान बन ढ़ाये कहर
तो तू किनारे से लगकर बह
दुर्गम हो डगर, कटीली हो सफर
तू सूरज की तरह चमकता रह
जीवन, तू अविरल बहता रह
जिंदगी कोई फूलों की सेज नहीं
जो तुझे सुलाकर रखे सुंदरी की तरह
जिंदगी तो काँटों की सेज है
तुझे रहना है गुलाब की तरह
जीवन, तू अविरल बहता रह
जिंदगी – घट रह सकता है, भरा
अगर अविरल तू बहता रह
तेरे सिवा किसको है फिकर
तू रह किसी प्रियतम की तरह
जीवन, तू अविरल बहता रह
जब भी निकले हृदय से आह
तू चातक की तरह मुँह खोले
रोके रख मेरी राह
यूँ ही मत रख, जिंदगी संग डाह
जीवन, तू अविरल बहता रह