Last modified on 16 फ़रवरी 2010, at 01:23

इन्क़लाब के बारे में कुछ बातें/ कात्यायनी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:23, 16 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कात्यायनी |संग्रह=जादू नहीं कविता / कात्यायनी }} …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नहीं मिलती है
रोटी कभी लम्बे समय तक
या छिन जाती है मिलकर भी बार-बार
तो भी आदमी नहीं छोड़ता है
रोटी के बारे में सोचना
और उसे पाने की कोशिश करना।
कभी-कभी लम्बे समय तक आदमी नहीं पाता है प्यार
और कभी-कभी तो ज़िन्दगी भर।
खो देता है कई बार वह इसे पाकर भी
फिर भी वह सोचता है तब तक
प्यार के बारे में
जब तक धड़कता रहता है उसका दिल।
ऐसा ही,
ठीक ऐसा ही होता है
इन्क़लाब के बारे में भी।
पुरानी नहीं पड़ती हैं बातें कभी भी
इन्क़लाब के बारे में।

रचनाकाल : नवम्बर, 1992