भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मसखरे का दुःख / कात्यायनी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:18, 16 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कात्यायनी |संग्रह=फुटपाथ पर कुर्सी / कात्यायनी }…)
अलक्षित रहा वह
अविचार भर हँसी के बीच
मोम की तरह
पिघलता और जमता हुआ
और लोगों को
सुख देता हुआ।
उसके पास एक घोड़ा तक नहीं था
दुःख बाँटने के लिए
और उसके परीधान चमकीले थे
मटमैली पुरानी कमीज़ के ऊपर
जिसके नीचे
उसका तरल हृदय था।
रचनाकाल : मई, 2001