Last modified on 16 फ़रवरी 2010, at 21:49

सागर तट पर जीवन जैसे / कात्यायनी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:49, 16 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कात्यायनी |संग्रह=फुटपाथ पर कुर्सी / कात्यायनी }…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आसमान है और
सतह सागर की जैसे
खुले हुए ऊपर-नीचे के होंठ,
पर्वत जैसे
कुछ उज्ज्वल, कुछ हरियाले,
धूमिल-सँवलाये दाँत।
तट पर जीवन ऐसा जैसे
लपलप करती
और कतरनी जैसी चलती
चपल-चतुर-सी जीभ,
शब्दों में रचती ध्वनियों को।

रचनाकाल : जनवरी-अप्रैल, 2003